31 दिसंबर 2007 की रात, पूरी दुनिया जिस वक्त नए साल की अगवानी के जश्न में डूबी हुई थी, रामपुर सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर आतंकी कहर बरपा रहे थे। एके-47, एके-56 और हैंडग्रेनेट से निकली बारूद सीआरपीएफ के जवानों के जिस्म को जला रही थी। हमले में सात जवान समेत आठ लोग मारे गए थे। जिसकी सुनवाई आज भी कोर्ट में चल रही है।
रामपुर में सीआरपीएफ का ग्रुप सेंटर है। जहां से जम्मू, छत्तीसगढ़, लखनऊ, दिल्ली और उड़ीसा में जवान भेजे जाते हैं। इसके अलावा शांति और सुरक्षा व्यवस्था के लिए कहीं भी उन्हें तैनाती दी जाती है। इन जवानों को राशन से लेकर गोला-बारूद तक सब रामपुर सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर से ही सप्लाई होता है। जिस पर वर्ष 2007 की आखिरी रात ऐसी कालिख पोत गई, जिसे ग्रुप सेंटर कभी नहीं भुला सकता। रात को करीब 2:15 बजे ग्रुप सेंटर पर आतंकियों ने हमला किया। गेट संख्या एक से एक के बाद एक जवानों को गोलियों से भूनते हुए आतंकी ग्रुप सेंटर के अंदर तक दाखिल हो गए थे। हमले में सात जवान और एक रिक्शा पोलर मारा गया था। करीब चार घंटे की मुठभेड़ के बाद भी आतंकी फरार होने में कामयाब रहे। हालांकि, बाद में एटीएस और यूपी पुलिस के संयुक्त अभियान में इन्हें रामपुर, लखनऊ से गिरफ्तार किया गया, जो बरेली सेंट्रल जेल और लखनऊ जेल में आज भी बंद हैं, रामपुर कोर्ट में इस केस पर आजकल सुनवाई चल रही है।
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सिर्फ दहशत फैलाना नहीं था मकसद
आतंकियों ने जिस तरह से हमला किया था, उससे साफ जाहिर होता है कि उनका मकसद सिर्फ दहशत फैलाना नहीं था। मकसद यही होता तो वे रोडवेज, रेलवे स्टेशन, आकाशवाणी केंद्र या फिर विदेशी स्कालर्स के मुख्य स्थान रजा लाइब्रेरी को लक्ष्य बनाते। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहंी किया क्योंकि, उनका टारगेट दशहत के साथ-साथ सीमा पर भारतीय ताकत को भी कमजोर करने का रहा होगा।
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इसलिए चुना सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर
सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर को टारगेट बनाने के पीछे आतंकियों का उद्देश्य यही रहा होगा कि यहां हमला करने से देशभर में दहशत तो फैलेगी, साथ ही ग्रुप सेंटर बर्बाद होगा तो सीमा पर लगे सीआरपीएफ जवानों को राशन और बारूद नहीं मिल सकेगा। वे कमजोर हो जाएंगे और नए जवान भी ग्रुप सेंटर वहां नहीं भेज सकेगा, इससे सीमा पर आतंकी गतिविधियों को और तेज किया जा सकेगा।
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गनीमत रही आयुध सेंटर तक नहीं पहुंचे
आतंकियों ने ग्रुप सेंटर में उत्तर दिशा स्थित गेट संख्या एक से हमला किया और दक्षिण में स्थित गेट संख्या दो की ओर बढ़ते गए। गेट संख्या-2 से सटा हुआ सीआरपीएफ का आयुध भंडार है, जहां से गोला-बारूद, अत्याधुनिक हथियार सप्लाई किए जाते हंै, आतंकी हमला करते हुए इसी भंडार की ओर जा रहे थे, लेकिन, डीआईजी ग्रुप सेंटर के कक्ष के पास ही उनकी इस तरह जवानों ने घेराबंदी कर मुठभेड़ की कि आतंकियो को वापस होना पड़ा।
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आईबी ने पहले ही कर दिया था अलर्ट
सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बारे में बीस दिन पहले ही आईबी ने गृह मंत्रालय को अलर्ट कर दिया था। इंटरसेप्ट पर मैसेज सुना गया था कि सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर फिदाइन हमला हो सकता है। यहां तक मैसेज था कि टारगेट नए साल पर पूरा किया जाएगा। उस वक्त स्थानीय समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। एक दिन पहले ही यह खबर भी छपी थी कि आज हो सकता है सीआरपीएफ पर हमला, और हमला हो गया।
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समय रहते नहीं चेते अफसर
आईबी के अलर्ट को गृह मंत्रालय ने हल्के में लिया। नतीजतन, अफसर नहीं चेते और उनकी लापरवाही सात जवानों की जिंदगी पर भारी पड़ गई। हमले के बाद रामपुर पहुंचे तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल से जब मीडिया ने सवाल-जवाब किए कि पहले से इंटरसेप्ट पर मैसेज सुने जाने के बाद भी कोताही क्यों बरती गई, इस सवाल का वह जवाब नहीं दे सके थे।
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लखनऊ और बरेली जेल में हैं आरोपी
सीआरपीएफ कांड में एटीएस ने चारबाग लखनऊ पाक नागरिक मोहम्मद फारूक और इमरान तथा मधुबनी बिहार के मूल निवासी एवं तत्कालीन निवासी पीओके सवाउद्दीन को गिरफ्तार किया था, जो इस वक्त लखनऊ में बंद हैं। जबकि, गोरे गांव मुम्बई के फहीम हम्माद अंसारी, खजुरिया रामपुर के शरीफ, कामरू मूंढापांडे, मुरादाबाद के जंगबहादुर, कुंडा प्रतापगढ़ के कौशर खां और बहेड़ी, बरेली के गुलाब खां को रामपुर समेत अलग-अलग स्थानों से गिरफ्तार किया था, जो इस वक्त बरेली सेंट्रल जेल में बंद हैं।
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अब तक 37 की हो चुकी है गवाही
इस केस में पहले हर 14वें दिन सुनवाई होती थी। इसके लिए कड़ी सुरक्षा में आरोपियों को पेशी पर लाया जाता था लेकिन, पिछले दिनों हाईकोर्ट ने इस केस की सुनवाई प्रतिदिन करने का आदेश दिया, जिस पर लगातार गवाही हो रही है। अब तक 37 अधिकारियों/कर्मचारियों की गवाही हो चुकी है। एडीजे-प्रथम, रामपुर की अदालत में केस की सुनवाई इस समय अंतिम चरण में पहुंच चुकी है।
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