रामपुर शहर की गलियों में बचपन गुजारने वाले अभिनेता रजा मुराद की हिंदी सिनेमा जगत की हिट फिल्म 'नमक हराम' पहली फिल्म रही। इसके बाद 'बिंदिया और बंदूक' आयी। फिर एक के बाद एक फिल्में आती रहीं। प्रेमरोग, राम तेरी गंगा मैली, खुद्दार, राम-लखन, त्रिदेव, प्यार का मंदिर, आंखें, मोहरा, गुप्त समेत करीब तीन सौ फिल्मों में अभिनय किया। बालीवुड के अलावा भोजपुरी सिनेमा, पंजाबी के अलावा कई अन्य भाषायी फिल्में भी इन्होंने की। वह बड़े गर्व से कहते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में अभी तो शुरुआत है, विश्व पटल पर छाएगा मेरा रामपुर....!
वह कहते हैं कि यह मेरा शहर है, मेरा रामपुर है। यहां की मिट्टी की सौंधी सी खुशबू अभी भी मेरी सांसों में समाई हुई है। यहां की फिजा में घुली है उर्दू की मिठास और हिंदी का प्यार। गंगा-जमुनी तहजीब के इस मरकज ने अब तरक्की की राह पर चलना शुरू कर दिया है। सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा है, ओवर ब्रिज बन रहे हैं, शिक्षा के संस्थान भी खुल रहे हैं और तकनीकी शिक्षा की ओर शहर के युवाओं का रुझान तेजी से बढ़ा है। ये तो शुरुआत है, बदलाव की यह हवा और तेजी पकड़ेगी, फिर मेरा रामपुर विश्व पटल पर छा जाएगा। यह उम्मीद भी है एक सपना भी।
शहर के बीचोबीच, हाथीखाना के पास एक मुहल्ला है जीना इनायत खां। यहीं से हुई मेरे जीवन की शुरुआत। मेरे वालिद हामिद खां उर्फ मुराद साहब यहां नगर पालिका में ईओ थे। रामपुर की एक खास बात है। यहां के लोग मुहब्बत में कोई भी नाम दे देते हैं। मेरे वालिद लंबे-चौड़े थे, खूबसूरत थे, उनकी आंखें कुंजी थीं। लिहाजा, शहर के लोगों ने उन्हें हामिद बिल्ला का ऐसा नाम दिया, जो आज भी मशहूर है। रामपुर की तंग गलियों से मुम्बई तक का सफर भले ही मैंने तय किया। लेकिन, आज भी मेरी सांसों में मेरा शहर बसा हुआ है। रामपुर की गंगा-जमुनी तहजीब मेरी जिंदगी में इस तरह समाई है कि कभी उससे दूर नहीं हुआ। उर्दू के अल्फाजों में वो पैनापन, जिसने बॉलीवुड में मुझे अलग पहचान दिलाई, ये मेरे शहर की ही देन है। यहां से मुम्बई गए करीब पचास साल हो गए। इस लंबे वक्त में शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा, जब अपने शहर की मुझे याद न आयी हो। यह शहर से लगाव ही है कि जब-जब मौका मिलता है, मैं अपने शहर जरूर आता हूं। वह कहते हैं कि बीते कुछ समय से शहर तरकी की राह पर है। उम्मीद ही नहीं भरोसा है कि शुरुआत में भले ही विकास की यह रफ्तार धीमी है लेकिन, वक्त के साथ साथ तरक्की की गति भी बढ़ रही है। रामपुर में प्रतिभाएं बहुत हैं पर, उन्हें तलाशने और फिर तराशने की जरूरत है।
शहर के बीचोबीच, हाथीखाना के पास एक मुहल्ला है जीना इनायत खां। यहीं से हुई मेरे जीवन की शुरुआत। मेरे वालिद हामिद खां उर्फ मुराद साहब यहां नगर पालिका में ईओ थे। रामपुर की एक खास बात है। यहां के लोग मुहब्बत में कोई भी नाम दे देते हैं। मेरे वालिद लंबे-चौड़े थे, खूबसूरत थे, उनकी आंखें कुंजी थीं। लिहाजा, शहर के लोगों ने उन्हें हामिद बिल्ला का ऐसा नाम दिया, जो आज भी मशहूर है। रामपुर की तंग गलियों से मुम्बई तक का सफर भले ही मैंने तय किया। लेकिन, आज भी मेरी सांसों में मेरा शहर बसा हुआ है। रामपुर की गंगा-जमुनी तहजीब मेरी जिंदगी में इस तरह समाई है कि कभी उससे दूर नहीं हुआ। उर्दू के अल्फाजों में वो पैनापन, जिसने बॉलीवुड में मुझे अलग पहचान दिलाई, ये मेरे शहर की ही देन है। यहां से मुम्बई गए करीब पचास साल हो गए। इस लंबे वक्त में शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा, जब अपने शहर की मुझे याद न आयी हो। यह शहर से लगाव ही है कि जब-जब मौका मिलता है, मैं अपने शहर जरूर आता हूं। वह कहते हैं कि बीते कुछ समय से शहर तरकी की राह पर है। उम्मीद ही नहीं भरोसा है कि शुरुआत में भले ही विकास की यह रफ्तार धीमी है लेकिन, वक्त के साथ साथ तरक्की की गति भी बढ़ रही है। रामपुर में प्रतिभाएं बहुत हैं पर, उन्हें तलाशने और फिर तराशने की जरूरत है।
रुपहले पर्दा और पर्दे के पीछे भी रामपुर की छाप
रुपहला पर्दा हो या फिर पर्दे के पीदे रामपुर की छाप रही है। यहां के बाल कलकार अजान से लेकर यूथ एक्ट्रेस रुख्सार तक अपनी कला पर्दे पर दिखा रही हैं। वहीं निर्माता निर्देशक शाहिद वहीद खां हों या फिर फिलहाल में ही रिलीज हुई फिल्म मेरे ब्रदर की दुल्हन के डायरेक्टर अली अब्बास जफर, दोनों ने ही पर्दे के पीछे रहकर अपने हुनर को दर्शकों के लिए परोसा है।
शाहिद वहीद खां
निर्माता-निर्देशक, मयूर फिल्मस
(अब तक 45 सीरियल में निर्देशन। खाली हाथ, रिश्ते, यादगार सीरियल। )
अपने शहर से शायर, कलाकार, कवि तरह-तरह की प्रतिभाआें ने रामपुर का नाम रोशन किया है। शहर तरक्की की राह पर है। शिक्षा का स्तर उठा है, स्वास्थ्य सेवाएं पहले से बेहतर हुई हैं। लेकिन, शहर और भी तरक्की कर सकता है। इसकी अच्छी संभावनाएं हैं। यहां उच्च शिक्षा और प्रोफेशनल कोर्स के संस्थान खोले जाएं। कलाकार को मंच मिले, इसका प्रयास किया जाना चाहिए। यहां छोटे-छोटे सभागार और विवाह मंडप हैं, एक भव्य हाल की आवश्यकता है, जहां थियेटर हो सके। थियेटर से ही कला निखरती है। यह रामपुर के लिए बहुत जरूरी है।
रुखसारसिने कलाकार
अपने शहर की रुखसार भी सनम बेवफा फिल्म से बालीवुड में धाक जमाने के बाद अब टेलीविजन चैनलों पर धूम मचा रही है। वह कई धारावाहिकों में काम कर चुकी है। आजकल सोनी चैनल पर कुछ तो लोग कहेंगे, में अपनी कला का जौहर दिखा रही है।
ये होना चाहिए-तकनीकी शिक्षा के खोले जाएं संस्थान
-आर्ट एवं कल्चर के लिए मिले बढ़ावा
-हिंदी, उर्दू के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा को दिया जाए बढ़ावा
-हाईटेक युग में इंग्लिश स्पीकिंग के खुलें संस्थान
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