किसी जमाने में चाकू की धार के लिए मशहूर रामपुर को अब एक नई धार मिल गई है। देश में रामपुरी चाकू के बाद अब आरी की धार चल रही है। पंजाब के बाद रामपुर में सबसे ज्यादा आरी का निर्माण हो रहा है। वहीं गार्डन टूल्स और कन्नी के कारोबार ने भी देश में रामपुर को एक नई पहचान दी है। मौजूदा समय में आरी, गार्डन टूल्स और कन्नी की सप्लाई देश में नागालैंड, मेघालय, कर्नाटक, कलकत्ता, असम, बंगलौर, दिल्ली, उत्तराखंड और बिहार में हो रही है। छोटी रकम से शुरू हुआ यह कारोबारा मौजूदा समय में सालाना दस करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच चुका है। वहीं हार्डवेयर के क्षेत्र में अभी भी अपार संभावनाएं रामपुर में छुपी हुई हैं।
बॉलीवुड में थी रामपुरी चाकू की धाक
साठ और सत्तर के दशक में हिंदी फिल्मों के खलनायक रामपुरी चाकू पर अक्सर इतराते देखे गए। लेकिन, धीरे-धीरे रामपुरी चाकू की धार कुंद होती चली गई। अब हालत ये है कि चाकू के कारोबार से जुड़े लोग चायना चाकू और दूसरे कारोबार से जुड़ने लगे हैं। आरी,कन्नी और गार्डन टूल्स के मेन मेन सप्लायर मशकूर मियां बताते हैं कि अठारहवीं सदी के दौरान जब आग उगलने वाले हथियारों का चलन हुआ तब रामपुर के नवाब फैजुल्ला खां ने अपनी सेना के लिए छोटे हथियारों के रूप में चाकू का इस्तेमाल करना शुरू किया था। भारत के दूसरे स्टेट के नवाब और राजाआें ने भी रामपुरी चाकू को अपनी शान के रूप में रखा। रामपुर के बेमिसाल पिस्तौलनुमा चाकू की छाप अंग्रेजों तक पर पड़ी। सन् 1949 में जब रामपुर स्टेट का आजाद भारत में विलय हुआ तक चाकू के व्यवसाय में सबसे ज्यादा उछाल आया। रामपुर में ही चाकू बेचने की बाध्यता समाप्त हो गई, कारोबारी दूसरे शहरों में भी रामपुरी चाकू बेचने लगे। जिससे चाकू उद्योग कभी बुलंदियों पर था। आलम यह था कि रामपुर बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से उतरते ही लोगों में बटनधारी चाकू को दखेने की हसरत नजर आती थी। बाजार में तीन इंच से लेकर पंद्रह इंच तक के एक तरफा धार, दो तरफा धार और बटन से खुलने वाले चाकू बहुत मशहूर थे। लेकिन, 1990 में राज्य सरकार ने चार इंच से ज्यादा लंबे ब्लेड के चाकू पर प्रतिबंध लगा दिया। तब से यह कारोबार मंदा होता चला गया। पुरानी तहसील पर कभी पचास से ज्यादा दुकानें हुआ करती थीं। दो हजार से अधिक कारीगर जुटे रहते थे। आज महज तीन दुकानें ही बची हंै। ये लोग भी चायना चाकू, कैंची व अन्य वस्तुएं बेचकर कारोबार कर रहे हैं।
हालांकि वक्त के साथ रामपुरी चाकू की धार भी कुंद पड़ती चली गई। कारोबार मंदा होने पर इस धंधे से जुड़े हुनरमंदों ने दूसरे व्यवसाय की ओर रुख करना शुरू कर दिया। बेरोजगारी बढ़ी तो लोगों ने आरी, कन्नी और गार्डनटूल्स का कारोबार शुरू कर दिया। स्थानीय हुनरमंदों ने रामपुरी चाकू की धार की जगह आरी की धार को तेज कर दिया। लघु उद्योग के रूप में शुरू हुआ यह कारोबार धीरे-धीरे रामपुर की पहचान बनने लगा। वहीं कन्नी और गार्डन टूल्स ने भी देश में रामपुर को एक नई पहचान दी।
यहां आज भी हैं कारखाने
मुहल्ला पुरानागंज, दुमहला रोड, नालापार, मदरसा कोना, पक्का बाग, जेल रोड, शुतरखाना, मोचियों वाली गली, मंगल की पैठ और मियां का बाग और बिलासपुर गेट में लगे हैं कारखाने।
फैक्ट फाइल-
-18वीं सदीं में नवाब फैजुल्ला खां के जमाने से हुई रामपुरी चाकू की शुरुआत
-1949 में स्टेट विलय के बाद पूरे भारत में फैल गया रामपुरी चाकू का कारोबार
-करीब दो हजार कारीगरों के हुनर से चमकी चाकू की धार
-पुरानी तहसील पर बनी मुख्य बाजार, 50 बड़े कारोबारियों ने फैलाया कारोबार
-1990 में राज्य सरकार ने चार इंच से लंबे चाकू पर लगाया प्रतिबंध
-अब कुंद हुई धार तो कारीगर और दुकानदारों ने ढूंढ लिया दूसरा कारोबार
-जिले में अब आरी, कन्नी और गार्डन टूल्स के छोटे-बड़े करीब 75 कारखानें चल रहे हैं।
-1600 हुनरमंदों को मिल रहा है रोजगार
-नागालैंड, मेघालय, कर्नाटक, कलकत्ता, असम, बंगलौर, मद्रास, दिल्ली, उत्तराखंड और बिहार में हो रही है सप्लाई।
-सप्लाई औसतन रोजाना 1100 आरी और 3000 कन्नी।
-सभी कारोबारियों का मिलाकर सालाना दस करोड़ रूपए तक पहुंचा टर्नओवर
फैक्ट फाइल-
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