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Wednesday, 1 March 2017

फिल्म इंडस्ट्री में अभी तो शुरुआत है, विश्व पटल पर छाएगा मेरा रामपुर

रामपुर शहर की गलियों में बचपन गुजारने वाले अभिनेता रजा मुराद की हिंदी सिनेमा जगत की हिट फिल्म 'नमक हराम' पहली फिल्म रही। इसके बाद 'बिंदिया और बंदूक' आयी। फिर एक के बाद एक फिल्में आती रहीं। प्रेमरोग, राम तेरी गंगा मैली, खुद्दार, राम-लखन, त्रिदेव, प्यार का मंदिर, आंखें, मोहरा, गुप्त समेत करीब तीन सौ फिल्मों में अभिनय किया। बालीवुड के अलावा भोजपुरी सिनेमा, पंजाबी के अलावा कई अन्य भाषायी फिल्में भी इन्होंने की। वह बड़े गर्व से कहते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में अभी तो शुरुआत है, विश्व पटल पर छाएगा मेरा रामपुर....!

वह कहते हैं कि यह मेरा शहर है, मेरा रामपुर है। यहां की मिट्टी की सौंधी सी खुशबू अभी भी मेरी सांसों में समाई हुई है। यहां की फिजा में घुली है उर्दू की मिठास और हिंदी का प्यार। गंगा-जमुनी तहजीब के इस मरकज ने अब तरक्की की राह पर चलना शुरू कर दिया है। सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा है, ओवर ब्रिज बन रहे हैं, शिक्षा के संस्थान भी खुल रहे हैं और तकनीकी शिक्षा की ओर शहर के युवाओं का रुझान तेजी से बढ़ा है। ये तो शुरुआत है, बदलाव की यह हवा और तेजी पकड़ेगी, फिर मेरा रामपुर विश्व पटल पर छा जाएगा। यह उम्मीद भी है एक सपना भी।
शहर के बीचोबीच, हाथीखाना के पास एक मुहल्ला है जीना इनायत खां। यहीं से हुई मेरे जीवन की शुरुआत। मेरे वालिद हामिद खां उर्फ मुराद साहब यहां नगर पालिका में ईओ थे। रामपुर की एक खास बात है। यहां के लोग मुहब्बत में कोई भी नाम दे देते हैं। मेरे वालिद लंबे-चौड़े थे, खूबसूरत थे, उनकी आंखें कुंजी थीं। लिहाजा, शहर के लोगों ने उन्हें हामिद बिल्ला का ऐसा नाम दिया, जो आज भी मशहूर है। रामपुर की तंग गलियों से मुम्बई तक का सफर भले ही मैंने तय किया। लेकिन, आज भी मेरी सांसों में मेरा शहर बसा हुआ है। रामपुर की गंगा-जमुनी तहजीब मेरी जिंदगी में इस तरह समाई है कि कभी उससे दूर नहीं हुआ। उर्दू के अल्फाजों में वो पैनापन, जिसने बॉलीवुड में मुझे अलग पहचान दिलाई, ये मेरे शहर की ही देन है। यहां से मुम्बई गए करीब पचास साल हो गए। इस लंबे वक्त में शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा, जब अपने शहर की मुझे याद न आयी हो। यह शहर से लगाव ही है कि जब-जब मौका मिलता है, मैं अपने शहर जरूर आता हूं। वह कहते हैं कि बीते कुछ समय से शहर तरकी की राह पर है। उम्मीद ही नहीं भरोसा है कि शुरुआत में भले ही विकास की यह रफ्तार धीमी है लेकिन, वक्त के साथ साथ तरक्की की गति भी बढ़ रही है। रामपुर में प्रतिभाएं बहुत हैं पर, उन्हें तलाशने और फिर तराशने की जरूरत है।
 
 

रुपहले पर्दा और पर्दे के पीछे भी रामपुर की छाप
रुपहला पर्दा हो या फिर पर्दे के पीदे रामपुर की छाप रही है। यहां के बाल कलकार अजान से लेकर यूथ एक्ट्रेस रुख्सार तक अपनी कला पर्दे पर दिखा रही हैं। वहीं निर्माता निर्देशक शाहिद वहीद खां हों या फिर फिलहाल में ही रिलीज हुई फिल्म मेरे ब्रदर की दुल्हन के डायरेक्टर अली अब्बास जफर, दोनों ने ही पर्दे के पीछे रहकर अपने हुनर को दर्शकों के लिए परोसा है।

शाहिद वहीद खां
निर्माता-निर्देशक, मयूर फिल्मस
(अब तक 45 सीरियल में निर्देशन। खाली हाथ, रिश्ते, यादगार सीरियल। )
अपने शहर से शायर, कलाकार, कवि तरह-तरह की प्रतिभाआें ने रामपुर का नाम रोशन किया है। शहर तरक्की की राह पर है। शिक्षा का स्तर उठा है, स्वास्थ्य सेवाएं पहले से बेहतर हुई हैं। लेकिन, शहर और भी तरक्की कर सकता है। इसकी अच्छी संभावनाएं हैं। यहां उच्च शिक्षा और प्रोफेशनल कोर्स के संस्थान खोले जाएं। कलाकार को मंच मिले, इसका प्रयास किया जाना चाहिए। यहां छोटे-छोटे सभागार और विवाह मंडप हैं, एक भव्य हाल की आवश्यकता है, जहां थियेटर हो सके। थियेटर से ही कला निखरती है। यह रामपुर के लिए बहुत जरूरी है।

रुखसारसिने कलाकार
अपने शहर की रुखसार भी सनम बेवफा फिल्म से बालीवुड में धाक जमाने के बाद अब टेलीविजन चैनलों पर धूम मचा रही है। वह कई धारावाहिकों में काम कर चुकी है। आजकल सोनी चैनल पर कुछ तो लोग कहेंगे, में अपनी कला का जौहर दिखा रही है।

ये होना चाहिए-तकनीकी शिक्षा के खोले जाएं संस्थान
-आर्ट एवं कल्चर के लिए मिले बढ़ावा
-हिंदी, उर्दू के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा को दिया जाए बढ़ावा
-हाईटेक युग में इंग्लिश स्पीकिंग के खुलें संस्थान
 

कुंद हुई रामपुरी चाकू की धार....अब कुछ और भी हैं इस शहर की पहचान

किसी जमाने में चाकू की धार के लिए मशहूर रामपुर को अब एक नई धार मिल गई है। देश में रामपुरी चाकू के बाद अब आरी की धार चल रही है। पंजाब के बाद रामपुर में सबसे ज्यादा आरी का निर्माण हो रहा है। वहीं गार्डन टूल्स और कन्नी के कारोबार ने भी देश में रामपुर को एक नई पहचान दी है। मौजूदा समय में आरी, गार्डन टूल्स और कन्नी की सप्लाई देश में नागालैंड, मेघालय, कर्नाटक, कलकत्ता, असम, बंगलौर, दिल्ली, उत्तराखंड और बिहार में हो रही है। छोटी रकम से शुरू हुआ यह कारोबारा मौजूदा समय में सालाना दस करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच चुका है। वहीं हार्डवेयर के क्षेत्र में अभी भी अपार संभावनाएं रामपुर में छुपी हुई हैं।

 
बॉलीवुड में थी रामपुरी चाकू की धाक
साठ और सत्तर के दशक में हिंदी फिल्मों के खलनायक रामपुरी चाकू पर अक्सर इतराते देखे गए। लेकिन, धीरे-धीरे रामपुरी चाकू की धार कुंद होती चली गई। अब हालत ये है कि चाकू के कारोबार से जुड़े लोग चायना चाकू और दूसरे कारोबार से जुड़ने लगे हैं।
आरी,कन्नी और गार्डन टूल्स के मेन मेन सप्लायर मशकूर मियां बताते हैं कि अठारहवीं सदी के दौरान जब आग उगलने वाले हथियारों का चलन हुआ तब रामपुर के नवाब फैजुल्ला खां ने अपनी सेना के लिए छोटे हथियारों के रूप में चाकू का इस्तेमाल करना शुरू किया था। भारत के दूसरे स्टेट के नवाब और राजाआें ने भी रामपुरी चाकू को अपनी शान के रूप में रखा। रामपुर के बेमिसाल पिस्तौलनुमा चाकू की छाप अंग्रेजों तक पर पड़ी। सन् 1949 में जब रामपुर स्टेट का आजाद भारत में विलय हुआ तक चाकू के व्यवसाय में सबसे ज्यादा उछाल आया। रामपुर में ही चाकू बेचने की बाध्यता समाप्त हो गई, कारोबारी दूसरे शहरों में भी रामपुरी चाकू बेचने लगे। जिससे चाकू उद्योग कभी बुलंदियों पर था। आलम यह था कि रामपुर बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से उतरते ही लोगों में बटनधारी चाकू को दखेने की हसरत नजर आती थी। बाजार में तीन इंच से लेकर पंद्रह इंच तक के एक तरफा धार, दो तरफा धार और बटन से खुलने वाले चाकू बहुत मशहूर थे। लेकिन, 1990 में राज्य सरकार ने चार इंच से ज्यादा लंबे ब्लेड के चाकू पर प्रतिबंध लगा दिया। तब से यह कारोबार मंदा होता चला गया। पुरानी तहसील पर कभी पचास से ज्यादा दुकानें हुआ करती थीं। दो हजार से अधिक कारीगर जुटे रहते थे। आज महज तीन दुकानें ही बची हंै। ये लोग भी चायना चाकू, कैंची व अन्य वस्तुएं बेचकर कारोबार कर रहे हैं।
हालांकि वक्त के साथ रामपुरी चाकू की धार भी कुंद पड़ती चली गई। कारोबार मंदा होने पर इस धंधे से जुड़े हुनरमंदों ने दूसरे व्यवसाय की ओर रुख करना शुरू कर दिया। बेरोजगारी बढ़ी तो लोगों ने आरी, कन्नी और गार्डनटूल्स का कारोबार शुरू कर दिया। स्थानीय हुनरमंदों ने रामपुरी चाकू की धार की जगह आरी की धार को तेज कर दिया। लघु उद्योग के रूप में शुरू हुआ यह कारोबार धीरे-धीरे रामपुर की पहचान बनने लगा। वहीं कन्नी और गार्डन टूल्स ने भी देश में रामपुर को एक नई पहचान दी।

यहां आज भी हैं कारखाने
मुहल्ला पुरानागंज, दुमहला रोड, नालापार, मदरसा कोना, पक्का बाग, जेल रोड, शुतरखाना, मोचियों वाली गली, मंगल की पैठ और मियां का बाग और बिलासपुर गेट में लगे हैं कारखाने।


फैक्ट फाइल-
-18वीं सदीं में नवाब फैजुल्ला खां के जमाने से हुई रामपुरी चाकू की शुरुआत
-1949 में स्टेट विलय के बाद पूरे भारत में फैल गया रामपुरी चाकू का कारोबार
-करीब दो हजार कारीगरों के हुनर से चमकी चाकू की धार
-पुरानी तहसील पर बनी मुख्य बाजार, 50 बड़े कारोबारियों ने फैलाया कारोबार
-1990 में राज्य सरकार ने चार इंच से लंबे चाकू पर लगाया प्रतिबंध
-अब कुंद हुई धार तो कारीगर और दुकानदारों ने ढूंढ लिया दूसरा कारोबार
-जिले में अब आरी, कन्नी और गार्डन टूल्स के छोटे-बड़े करीब 75 कारखानें चल रहे हैं।
-1600 हुनरमंदों को मिल रहा है रोजगार
-नागालैंड, मेघालय, कर्नाटक, कलकत्ता, असम, बंगलौर, मद्रास, दिल्ली, उत्तराखंड और बिहार में हो रही है सप्लाई।
-सप्लाई औसतन रोजाना 1100 आरी और 3000 कन्नी।
-सभी कारोबारियों का मिलाकर सालाना दस करोड़ रूपए तक पहुंचा टर्नओवर


फैक्ट फाइल-